oxygen concentrators kya hai

what is Oxygen concentrators: कोरोना वायरस (Corona virus) की सेकेण्ड बेव एक तबाही लेकर आई है। सरकार के द्वारा किए गए मेडिकल व्यवस्थाए पर इसका गंभीर असर पड़ा है. लोग मेडिकल एक्युमेंट के लिए तरस रहे है. कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की किल्लत से लगातार मरीजों की मौत हो रही है. ऐसे में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एण्ड रिसर्च (आइसर) की एक रिसर्च राहत भरी खबर लेकर आई है. आइसर के दो विभागों के चार फैकल्टी मेंबर्स ने मिलकर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर तैयार किया है. इसे ऑक्सीकॉन नाम दिया है. इस लेख में आइए जानते हैं कि कि वास्तव में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर क्या होते है. उनकी कब आवश्यकता होती है,और उनका उपयोग कैसे किया जाता है, या कैसे नहीं किया जाता है. आइसर के द्वारा बनाई गई ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के बारे जानगें और इस फील्ड में क्या नई टेकनॉलॉजी से इसमें इनोवेशन किया जा रहा  जिससे की भारी मांग की आपूर्ति की जी रही है.

देश में कोरोना की दूसरी लहर का भीषण कहर जारी है. ऐसे में तमाम राज्य ऑक्सीजन की किल्लत का सामना भी कर रहे हैं. ऐसे में ऑक्सीजन सिलेंडर की भी बड़े पैमाने पर कमी सामने आ रही है. इसकी जगह ऑक्सजीन कंसंट्रेटर (oxygen concentrator) की मांग बढ़ रही है. जिसका खास तौर पर होम आइसोलेशन के मरीजों और ऑक्सीजन की कमी का सामने कर रहे है. अस्पतालों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

What is Oxygen Concentrator/क्या है ऑक्सजीन कंसंट्रेटर?

आसान भाषा में समझे तो ऑक्सजीन कंसंट्रेटर एक मेडिकल डिवाइस है जो आसपास की हवा से ऑक्सीजन को एक साथ इकट्ठा करता है. पर्यावरण की हवा में 78 फीसदी नाइट्रोजन और 21 फीसदी ऑक्सीजन गैस होती है. दूसरी गैस बाकी 1 फीसदी हैं. ऑक्सीजन कंसंट्रेटर इस हवा को अंदर लेता है, उसे फिल्टर करता है. नाइट्रोजन को वापस हवा में छोड़ देता है. और बाकी बची ऑक्सीजन मरीजों को उपलब्ध कराता है.

ये ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर शरीर के लिए जरूरी ऑक्सीजन की आपूर्ति में उसी तरह से करते हैं. जैसे कि ऑक्सीजन टैंक या सिलेंडर एक केन्युला (प्रवेशनी), ऑक्सीजन मास्क या नाक में लगाने वाली ट्यूबों के जरिये. अंतर यह है कि, सिलेंडरों को बार बार भरने (रिफिल) की जरूरत पड़ती है, ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर चौबीसों घंटे सातों दिन काम कर सकते हैं.

जानकारों का मानना है कि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर हल्के और मध्य लक्षणों वाले कोविड-19 मरीजों के लिए काफी उपयोगी है. खास तौर पर ऐसे मरीजों के लिए जिनका ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 85 फीसदी या उससे ज्यादा होता है. लेकिन गंभीर स्थिति वाले कोरोना के मरीजों के लिए यह कारगर नहीं है. जिन मरीजों को आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत हो, उनका काम इससे नहीं चल सकता, क्योंकि उन्हें एक मिनट में 24 लीटर या उससे भी ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है. हालांकि जब तक मरीज को सिलेंडर के जरिए पर्याप्त ऑक्सीजन देने की पक्की व्यवस्था नहीं हो जाती, तब तक कंसंट्रेटर उनकी जान बचाने के काम आ सकते हैं.ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को जरूरत पड़ने पर कई ट्यूब के साथ अटैच किया जा सकता है, ताकि इससे एक साथ दो  या अधिक मरीजों को ऑक्सीजन मिल सके.हांलाकि इसके पीछे जानकारों के मुताबिक कोरोना के मामलों में ऐसा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे क्रॉस-इन्फेक्शन का खतरा रहता है.

एक मिनट में कितनी ऑक्सीजन दे सकता है कंसंट्रेटर?

ऑक्सीजन कंसंट्रेटर अलग-अलग क्षमता के होते हैं. छोटे पोर्टेबल कंसंट्रेटर एक मिनट में एक या दो लीटर ऑक्सीजन मुहैया करा सकते हैं, जबकि बड़े कंसंट्रेटर 5 या 10 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन सप्लाई की क्षमता रखते हैं. इनसे मिलने वाली ऑक्सीजन 90 से 95 फीसदी तक शुद्ध होती है. लेकिन अधिकतम रेट से सप्लाई करने पर शुद्धता में कुछ कमी आ सकती है.कंसंट्रेटर्स में ऑक्सीजन सप्लाई को रेगुलेट करने के लिए प्रेशर वॉल्व लगे होते हैं. आप को बता दें कि  WHO द्वारा 2015 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक कंसंट्रेटर को लगातार काम करने के लिए डिजाइन किया जाता है. जिससे लगातार लंबे समय तक ऑक्सीजन सप्लाई कर सके.

मार्केट में मिलने वाले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की लागत जहां तीस से चालीस हजार रुपये होती है .यहां तैयार कंसंट्रेटर की लागत बीस हजार रुपये से कम है. यह प्रति मिनट तीन लीटर ऑक्सीजन बनाता है. यह ऑक्सीजन 93 प्रतिशत तक शुद्ध है.

सबसे अच्छी बात यह है कि हाल ही में कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की किल्लत से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एण्ड रिसर्च (आइसर) की एक रिसर्च राहत भरी खबर लेकर आई है. आइसर के दो विभागों के चार फैकल्टी मेंबर्स ने मिलकर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर तैयार किया है. इसे ऑक्सीकॉन नाम दिया है .मार्केट में मिलने वाले ऑक्सीजन कंसंट्रेटर की लागत जहां तीस से चालीस हजार रुपये होती है, .यहां तैयार कंसंट्रेटर की लागत बीस हजार रुपये से कम है. यह प्रति मिनट तीन लीटर ऑक्सीजन बनाता है. यह ऑक्सीजन 93 प्रतिशत तक शुद्ध है. आइसर इसके इंड्रस्ट्रीयल निर्माण पर विभिन्न कंपनियों से बात कर रहा है। इससे केंद्र, राज्य सरकार और निजी अस्पताल इलाज की लागत कम कर सकेंगे.वैज्ञानिकों की टीम इसे लेकर पिछले तीन माह से रिसर्च कर रही थी.

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इसके बनाने में जियोलाइट मटेरियल से इसकी पैकेजिंग की है. डॉ. भट्टाचार्या के अनुसार दो जियोलाइट कॉलम में टाइमिंग सीक्वेंस का इस तरह उपयोग किया गया है. जिससे यह अल्टरनेटिव काम करते हैं. हमने टाइम सीक्वेंस माइक्रोप्रोसेसर सर्किट को यहां डेवलप किया है.यह मटेरियल हवा से ऑक्सीजन को खींच लेता है. आमतौर पर ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में पांच से सात वॉल्व का उपयोग किया जाता है. हमने सिर्फ दो वॉल्व का उपयोग किया है. इससे इसकी लागत कम हुई। साथ ही यह अन्य कंसंट्रेटर की अपेक्षा तेज भी है.

अबपोर्टेबल डिवाइस कर रहे हैं तैयार-  वैज्ञानिकों के रिसर्च के दौरान ऑक्सीकॉन को दो से तीन घंटे तक लगातर चलाया गया। यह इतनी देर तक वातावरण से ऑक्सीजन खींच सकता है। ऑक्सीकॉन अन्य कंसंट्रेटर के मुकाबले काफी हल्का है। अब पोर्टेबल डिवाइस तैयार किया जा रहा है, जिसे हाथ में लेकर चला जा सके।

ओपन सोर्स आइसर के डायरेक्टर शिवा उमापति ने बताया कि आइसीएमआर से सॢटफिकेट मिल चुका है. हम इस पेंटेंट को किसी कंपनी विशेष को नहीं देंगे यह टेक्नोलॉजी ओपन सोर्स रहेगी. आइसर चाहता है कि इसका ज्यादा से ज्यादा कंपनियां निर्माण करें।

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